Agra : जाणता राजा’ के मंचन ने किया भावविभोर,तुलजा भवानी की आराधना, कृष्ण भक्ति और मां जीजाबाई की प्रेरणा से शिवाजी महाराज के आदर्श हुए जीवंत Tv92anews

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‘जाणता राजा’ के मंचन ने किया भावविभोर — तुलजा भवानी की आराधना, कृष्ण भक्ति और मां जीजाबाई की प्रेरणा से शिवाजी महाराज के आदर्श हुए जीवंत

आगरा। स्थान आगरा का कलाकृति कन्वेंशन सेंटर लेकिन महा नाट्य की जीवंतता ऐसी कि मराठा स्वराज का काल दृश्यमान हो गया। शौर्य, पराक्रम, समर्पण और विश्वास के साथ दूरदर्शी सोच की गाथा ने वर्तमान परिदृश्य को विकास की राह दिखाई।
दिव्य प्रेम सेवा मिशन के सेवा प्रकल्पों को समर्पित ऐतिहासिक महा नाट्य ‘जाणता राजा’ के द्वितीय दिवस का मंचन भाव, भक्ति और पराक्रम का अनुपम संगम बन गया। परिसर में उपस्थित दर्शक मराठी संस्कृति, धर्मनिष्ठा और राष्ट्रप्रेम के इस अद्भुत समागम से भावविभोर हो उठे।
कार्यक्रम की शुरुआत तुलजा भवानी माता की पूजा-अर्चना से हुई। मंच पर प्रस्तुत इस भव्य दृश्य में शिवाजी महाराज की मातृभक्ति और दिव्य आस्था का अलौकिक चित्रण हुआ। तुलजा भवानी की आराधना के माध्यम से यह संदेश दिया गया कि शिवाजी के संपूर्ण जीवन का आधार ‘मातृशक्ति’ और ‘धर्मशक्ति’ थी।
मंचन के दौरान कृष्ण भक्ति के प्रसंग भी हृदय को छू गए — गीत “तुम हो कृष्ण कन्हाई…” के माध्यम से शिवाजी महाराज के भक्तिभाव और ईश्वर के प्रति समर्पण की झलक ने वातावरण को आध्यात्मिक बना दिया। युद्धभूमि और राजनीति के बीच भी भक्ति, विनम्रता और आस्था का यह संतुलन दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर गया।
विशेष रूप से मां जीजाबाई की भूमिका ने नाटक में भावनात्मक गहराई जोड़ दी। उनके चरित्र के माध्यम से यह दिखाया गया कि शिवाजी महाराज के संस्कार, राष्ट्रनिष्ठा और स्त्री सम्मान की नींव जीजाबाई के मार्गदर्शन में ही पड़ी। मां जीजाबाई का धैर्य, दूरदृष्टि और धार्मिक संस्कार शिवाजी के जीवन की दिशा बन गए। नाटक में जब जीजाबाई पुत्र शिवाजी को धर्म, नीति और मर्यादा का पाठ पढ़ाती हैं, तो पूरा सभागार श्रद्धा से नतमस्तक हो जाता है।
इसके साथ सूत्रधार के रूप में प्रस्तुत हुआ महाराष्ट्र की लोकसंस्कृति का प्रतीक लावणी नृत्य, जिसने रंग, संगीत और लोकजीवन की झांकी को जीवंत कर दिया। आकर्षक परिधान, तालबद्ध लय और संगीत की गूंज ने वातावरण में उत्सव की ऊर्जा भर दी।
मंचन के प्रमुख दृश्यों में से एक रहा — शिवाजी महाराज का स्त्री सम्मान के प्रति दृष्टिकोण। युद्ध में पराजित शत्रु पक्ष की महिलाओं के प्रति आदर और संरक्षण का भाव दिखाते हुए उन्होंने यह अमर संदेश दिया कि “स्त्री का सम्मान ही सच्चे योद्धा का धर्म है।” यह संवाद आज के समाज के लिए भी प्रेरणा स्वरूप बना।

दर्शकों की प्रतिक्रियाएँ और मंच की भव्यता
सभागार खचाखच भरा हुआ था और मंच पर रणभूमि का भव्य दृश्य जीवंत रूप से उभरा, जिसमें शिवाजी महाराज के युग की सम्पूर्ण झलक दिखाई दी। मंच पर कोंकड़ के जल बंदरगाह, पहली समुद्री सेना की तैयारी और युद्ध की रणनीति दर्शकों के सामने जीवन्त हो उठी। साथ ही, कुआँ खुदाई और किले की संरचना का विस्तृत चित्रण नाटक में दिखाया गया, जिससे पूरी प्रस्तुति अत्यंत यथार्थवादी और रोमांचक बन गई। दर्शकों ने नाटक को अद्भुत, भव्य और प्रेरणादायक बताया। कई ने कहा कि ऐसा दिव्य मंचन पहली बार देखा, जिसमें भक्ति, शौर्य, रणनीति और संस्कृति का अनुपम संगम था।
प्रकाश, ध्वनि, संगीत और संवादों के उत्कृष्ट समन्वय ने हर दृश्य को और भी सजीव बना दिया। दर्शकों ने अनुभव किया मानो वे स्वयं शिवकालीन युग में प्रवेश कर गए हों।

“तेजस्विनी नागरे ने जीजाबाई के पात्र में दर्शाया आदर्श मातृत्व का स्वरूप”
नाटक ‘जाणता राजा’ में तेजस्विनी नागरे ने जीजाबाई के रूप में ऐसी छवि प्रस्तुत की, जो हर मां के लिए प्रेरणा बनती है। उनके पात्र ने दिखाया कि एक मां न केवल अपने पुत्र का मार्गदर्शन करती है, बल्कि उसके चरित्र और व्यक्तित्व को भी आकार देती है। जीजाबाई की दृढ़ इच्छाशक्ति, मातृत्व की संवेदनशीलता और राष्ट्रप्रेम ने मंच पर दर्शकों को भावविभोर कर दिया।

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