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संत शिरोमणी गुरु रविदास जी की 648 की जयंती पर बड़े श्रद्धा भाव के साथ मनाई

तीरथ नावण जाउ तीरथ नाम है तीरथ शब्द बीचार अंतर गिआनु है

आगरा माघ पूर्णिमा गुरुघर नगला परम सुख चेतना स्तंभ फिरोजाबाद रोड आगरा पर
परम पारस संत शिरोमणी गुरु रविदास जी की जयंती पर गुरु रविदास जी के चेतना स्तंभ गुरु घर को भव्य फूलों से सजाया गया आलौकिक कीर्तन दरबार में श्रद्धालुओं को बड़े श्रद्धा भाव के साथ भाई गुरशरण सिंह जत्था आगरा द्वारा रविदास जी की वाणी कीर्तन अमृत नाम शब्द गुरबाणी कीर्तन की वर्षा से भिगोया
तीरथ नावण जाउ तीरथ नाम है तीरथ शब्द बीचार अंतर गिआनु है,,,, बोहत जनम बिछरे थे माधो एह जनम तुम्हारे लेखे ,,,,,, कह रविदास आस लग जीवों चिर भयो दर्शन देखें,,,,,मेरी प्रीत गोविंद सियो जिन घटै,,,,, सांची प्रीत हम तुम सियो जोरी,,,, एक के बाद एक शब्दों की हाजरी भरी वह संत रविदास जी की जीवनी पर कथा सुना द्वारा संगतो को निहाल किया संस्थापक हरि चरन मुल्ला जी की प्रेरणा से दशकों से साध संगत गुरु रविदास जी की जयंती पर हजारों भक्त गुरु रविदास जी को मत्था टेक नाम सिमरन से जुड़ सत्य के मार्ग पर चलने का संकल्प लिया गुरु रूप संगत को के लिए हर साल यह आयोजन किया जाता है समागम में आए सभी का रविकांत मुल्लाजी गुरु सेवक श्याम भोजवानी आभार व्यक्त किया हजारों श्रद्धालुओं में श्रम साधना ही एकमात्र ईश्वर भक्ति है पुस्तक का वितरण किया
गुरु घर आयें गुरु कृपा पायें सतनाम हरि अरदास के अपरांत हजारों श्रद्धालुओं गुरु का लंगर पाया।

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मुख्य रूप से रविकांत मुल्लाजी, विजेंद्र सिंह, गुरु सेवक श्याम भोजवानी ,गंगा प्रसाद पुष्कर, रामबाबू हरित,सौरभ कांत, श्रीकांत, देवराज, यशराज,युवराज,
शिवचनर पहलवान, ओम प्रकाश, मनजीत सिंह ,चित्रा, सीमा, कनक, नंदिनी, रवि अग्रवाल, आदित्य मौजूद रहे

संत रविदास जी का जन्म सम्बत्-1433 (माघ पूर्णिमा) को हुआ था ।

चौदह सौ तैतीस की, माघ सुदी पन्द्रास । दुखियों के कल्याण हित, प्रकटे श्री रैदास !!

 

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श्री गुरुग्रंथ साहिब जी में गुरु रविदास जी के चालीस शब्द है, श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी का संकलन पाँचवे सिक्स गुरु अर्जुनदेव जी में स्वयं 1604 सम्बत में सम्पन्न किया। भरात रविदास जी के इन्हीं विचारों संदेशों और उपदेशों के सम्पर्क में जव गुरुनानक जी आये तो अपनी वाणी में भगत रविदास जी की वाणी को यथा स्थान देकर भगत रविदास जी को गुरु पद से सुशोभित क्योंकि बाणी में लिखा है किवाणी गुरु, गुरु ही वाणी अर्थात-वाणी ही गुरु का स्वरुप है और गुरु का खरुप बाणी है। इस प्रकार जब भगत रविदास जी की रचनाओं को श्री गुरु ग्रंथ साहिव में सम्मलित करलिया त्व वह रचना न रहकर लोग जाने यह गीत है लेकिन वह ब्रह्म विचार है। इस प्रकार रविदास जी की रचनायें ब्रह्म शब्द रूप धारण कर गुरु पद से सुशोभित हुई। इसलिये सिक्स आस्था में भगत रविदास जी को गुरु रविदास जी के नाम से सम्मिलित किये जाने से सिक्ख धर्म में जो सर्वोत्तम मान सम्मान गुरुनानक जी को दिया जाता है। वही सर्वोत्तम मान सम्मान गरु रविदास जी तथा उनकी वाणी को दिया जाता है। इस प्रकार आपकी विचार धारा बाणी रूप में है। अब वह जुगों जुग अटल चौरद्दत के मालिक जगदी ज्योति श्री गुरु ग्रंथ साहिब में तब तक सुशोभित है। जब तक यह ब्रह्माण्ड है।

वाणी ही गुरु, गुरु ही वाणी

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